अस्पताल, जेल और श्मशान।
अस्पताल, जेल और श्मशान। इन तीनों जगहों पर जाने से अहंकार धूमिल हो जाता है, अगर किसी का नहीं हो रहा है, तो वो लोग अपवाद हैं। पहली जगह पर मैं प्रतिदिन नौकरी करने जाता हूँ, दूसरी जगह पर में कुछ माह में कुछ बार, वो भी नौकरी के उद्देश्य से ही। तीसरी जगह मैं बहुत कम गया हूँ, लेकिन तीसरी जगह जाने पर दुनिया मोह-माया से मुक्त नश्वर दिखाई पड़ती है।
अच्छी आदतों के साथ जिया जाए तो पहली जगह जाने से बचा जा सकता है, जैसे प्रतिदिन अपने शरीर को एक घंटे का व्यायाम देना। दावा है कि असंयमित जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ किसी व्यक्ति को छू नहीं पायेंगी। अच्छा और बुरा जीवन हमारी अच्छी और बुरी आदतों का ही परिणाम है। अगर कोई चोट या एक्सीडेंट होने पर जाना पड़े तो ये अलग बात है। तीसरी जगह अंतिम पड़ाव है। लेकिन दूसरी जगह जाने से बचा जा सकता है। बस, क्षणिक क्रोध में कोई ग़लत फ़ैसला लेकर अपराध नहीं करना है, क्योंकि क्रोध कुछ क्षणों में शांत हो जाता है लेकिन क्रोध के कारण हुए अपराध की कुफ़्र कभी शांत नहीं होती। अगर हमें कोई उकसाता है तो भी क्रोध के कारण होने वाले कर्म का परिणाम पहले से भांप लेना है। यदि हम किसी शोषक द्वारा शोषित होते हैं तो भी हमें कानून का सहारा लिया जाना चाहिए, ख़ुद अपना मसीहा नहीं बनना चाहिए ।
सोचिए, एक पंछी, जो आज़ाद है, वो हवा में जहाँ तक उड़ना चाहता है, उड़ सकता है, पेड़ की जिस शाखा पर बैठना चाहता है, बैठ सकता है, अपनी पसंद का दाना चुग सकता है। हर व्यक्ति आज़ाद पैदा होता है और ताउम्र यही कोशिश रहनी चाहिए कि वो आज़ाद ही दुनिया से रुख़सत हो।
वैसे, हमें और भी ज़्यादा विनम्र बनने के प्रयास करने चाहिये, क्योंकि जिन लोगों से वास्ता है या होगा उनकी फ़ितरत कोई नहीं जानता।
~ मनीष शर्मा

