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    होली के पर्व पर मेरी ये रचना सरहद पर मुस्तैद जवानों को समर्पित। किन रंगों को मैं उछालूँ ?क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँजिन रंगों से माँ की ओढ़नी कोबन रंगरेज़ा नितदिन रंगा करता था किन रंगों को मैं उछालूँ ?क्या ? उन रंगों को मैं उछालूँजो बचपन में दोस्तों संगहोली में खेला करता…

  • तुम ही से हैं हम

    दाता ने दुनिया बनाई आदमी बनाये औरत बनाई प्यार बनाया क़ायनात बनाई ख़ुश रहने के लिए प्रकृति के अनुपम उपहार बनाये पर आदमी ने क्या किया धुंधले सपनों के भौंतिक साधन बनाये स्वार्थ के ऊँचे महल बनाये महल को उसने लोभ-लालच हिंसा-नफ़रत द्वेष-ईर्ष्या बलात्कार झूठ-मकार दोगले मुखोटों से अलंकृत किया भूल गया आदमी किसने उसे…

  • मनभावन होली

    उड़े गुलाल चहुमुखी सतरंगी, पचरंगी सारे जहाँ को अपने रंग से रंगती लाल-गुलाबी, पीले-नीले रंगो की फुहार खुशी उल्लास से भरी मनरंगी बहार जन-जन के मन में प्यार का रंग भर दे हर एक के मन को उमंग के रंग से भर दे फिज़ाओं में मदमस्त रंगों का नशा फैले फूलों संग कलियाँ भी खूशबू…

  • आओ नववर्ष पर नव संकल्प करें हम

    गतवर्ष ने मूँदे नयन नववर्ष ने खोले नयन गतवर्ष में थी कुछ ख़ुशियाँ और थे चुटकी भर कुछ ग़म ख़ुशियों से भर ली हमने झोली ग़मों की जला दी हमने होली आज क्षितिज पर हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास हैं आज नभ पर भी हर्ष है उल्लास है नववर्ष का का महारास…

  • जीने के लिये चंद साँसें चाहिये

    किसी को ज़मीन चाहिये तो किसी को आसमान चाहिये किसी को दौलत चाहिये तो किसी को शौहरत चाहिये किसी को युद्ध चाहिये तो किसी को नफ़रत चाहिये किसी को राजनीति चाहिये तो किसी को आरक्षण चाहिये उस शख़्श से पूछो ज़िंदगी के मायने जिसे पेट भरने के लिये एक सूखी रोटी चाहिये उस शख़्श से…

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    पिता है वृक्ष

    मैं भटकता पंछी, पिता है वृक्ष साया दे, छायाँ दे, संरक्षण दे साध सकूँ मैं अपना हर लक्ष्य पिता मेरे धनुष को वो बाण दे निराशा के तमस को दूर कर मुझे नित नई रोशनी का प्राण दे मैं भटकता पंछी, पिता है वृक्ष साया दे, छायाँ दे, संरक्षण दे ~ मनीष शर्मा

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