Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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शराब शबाब और क़बाब
शराब, शबाब और क़बाबदिखे ये दुनिया इनकी दासमिलता है अगर लुत्फ़ इनसेतो पर्दानशीं क्यों है समाज ? ~ मनीष शर्मा
तुम ना बदलना
भले ही बदले शहर की आब ओ हवा और मिज़ाज़ हम ना बदलेगें, तुम ना बदलना बदले चाहे उम्र के कितने भी पड़ावं ~ मनीष शर्मा
क़ैद तोड़ती है ग़ुरूर को
क़ैद तोड़ती है ग़ुरूर को, ग़ुलामी तोड़े हस्सास जो बशर ना जाने ये, ज़िंदगी उसकी बक़वास ~ मनीष शर्मा
मैं, मैं नहीं रहता
मैं जब भी क़रीब होता हूँ तुम्हारे मैं, मैं नहीं रहता, तुम हो जाता हूँ ~ मनीष शर्मा
हम फ़ितरत से कैसे हैं
हम फ़ितरत से कैसे हैं ज़ुबाँ से ज़ाहिर किये जाने की ज़रूरत नहीं चलिए चार दिन साथ रहते हैं चार दिन काफी है हमारी फ़ितरत जानने को ~ मनीष शर्मा
मैं तेरा अपना ना हुआ होता
अब तू मिलता है ग़ैरों से हँस हँस के काश! मैं तेरा अपना ना हुआ होता ~ मनीष शर्मा
