Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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मिले किताबों में
ताउम्र जिन्हें मैं ढूँढता रहा ज़माने में वे सभी मुझे, छपे मिले किताबों में ~ मनीष शर्मा
मिलता मैं बस ख़ुद ही से हूँ
रहता तो मैं भी इसी जहाँ में हूँ पर मिलता मैं बस ख़ुद ही से हूँ ~ मनीष शर्मा
ज़िंदगी है महाठगनी
ज़िंदगी है महाठगनी, छलावा है काया अब ना मोह बचा मुझमें ना ही माया भ्रम का पर्दा बड़ा ही रूपहला वा ना दिखता जो देखना चाहा ~ मनीष शर्मा
हर एक शख़्श
हर एक शख़्श की आँखों में आईना हैं मैंने अपने घर के सारे शीशे तोड़ डाले हर एक शख़्श के हाथों में ख़ंज़र हैं मैंने अपने घर के छुरी, कटार फेंक डाले ~ मनीष शर्मा
मुझे खिलौना बना देगी
या मौला तू मुझे हमेशा बच्चा ही रहने देना बड़ा हो गया तो दुनिया मुझे खिलौना बना देगी ~ मनीष शर्मा
पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके
क़दम क़दम पर पैरों में बेड़ियाँ डाली गई उसके वरना हर क़दम समाज को धूल सा उड़ा देती वो (स्त्री) ~ मनीष शर्मा
