इंसान की चुगली
इंसान की चुगली, मैं उस ख़ुदा से करूँगा धरती का इंसान ख़ुद को ख़ुदा समझने लगा है ~ मनीष शर्मा
इंसान की चुगली, मैं उस ख़ुदा से करूँगा धरती का इंसान ख़ुद को ख़ुदा समझने लगा है ~ मनीष शर्मा
कोई कभी रूठ ना जाये कोई कभी दूर चला ना जाये बस यही सोचकर के ताउम्र हाँ सा. – हाँ सा. करते रहे हम (हाँ सा. – Yes sir/Yes ma’am) ~ मनीष शर्मा
आँखों की कोर पर कुछ ख़्वाब रखे हैं मैंने डरता हूँ पलकें झपक ना जाये कहीं ~ मनीष शर्मा
बिन माचिस लगी दुश्मनी की आग में इंसान ज़िंदा जला करते हैं क्या जायेगा साथ ओ बन्दे आ हम तुम पक्की दोस्ती करते हैं ~ मनीष शर्मा
सर्द रात चाँद की चाँदनी से ही ख़ुद को सेंक लेता हूँ जलता है जब बदन तो तेरी यादों के दरिया में डुबकी ले लेता हूँ ~ मनीष शर्मा
गुलाबी नगरी का वाशिदां हूँ मेहरम, फ़ितरत से नहीं रिंदा हूँ चूम लेने दो गुलाब सरीके लबों को मैं इश्क की ख़ुराक पर ही ज़िंदा हूँ ~ मनीष शर्मा
साँसो का चलना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक़, ज़िंदा हूँ मैं दिल का धड़कना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक, ज़िंदा हूँ मैं तुझसे जुदा होके जीना, अगर ज़िंदगी है तो फ़िर बेशक, ज़िंदा ही हूँ मैं ~ मनीष शर्मा
सारा शहर मेनू इश्क़ दे नशे दा ज़ख़ीरा केंदा है डरदा हाँ, कित्थे तेनू मेरी लत न लग जेय ~ मनीष शर्मा
मैंनें अपने नैनों के पीछे दर्द का इक बादल छिपा लिया उस दर्दीले बादल की बरखा ने मुझे शायर बना दिया ~ मनीष शर्मा
ख़ुदा भी बड़ा ख़ुदगर्ज़ समझता होगा मुझे क्योंकि मेरी पहली और आख़िरी दुआ तुम ही हो ~ मनीष शर्मा