Counsellor | Writer | Poet | Lyricist | Composer | Singer.
JMFA 2017 Winner of the best lyricist.
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कवि और शायर ना होता
लोग कहते हैं मैं बड़ा उलझा उलझा सा शख़्स हूँ मैं कहता हूँ गर मैं सुलझा सुलझा सा होता तो शायद ’’कवि और शायर’’ ना होता ~ मनीष शर्मा
कोई कुछ नया तो नहीं करता
कोई कुछ नया तो नहीं करता है जहान में जहाँ कल कोई और था वहाँ आज हम हैं ~ मनीष शर्मा
हक़ीक़त में
हक़ीक़त में दो क़दम चलकर थक चुकी हैं ख़्वाहिशें मैं ख़ामख़्वाह मीलों के सफ़र तय करता रहा ख़्वाबों में ~ मनीष शर्मा
मैं अच्छा नहीं
मैं अच्छा नहीं, मैं बिल्कुल भी अच्छा नहीं क्यों कि अच्छे लोग, सच में बहुत बुरे होते हैं ~ मनीष शर्मा
इक कुफ़्र दिखी
कुछ दिलों में अपने लिये इक कुफ़्र दिखी बसेरा बदलना बेहतर, बाद जल जाने के ~ मनीष शर्मा
तुम अकेले तो नहीं हो मनीष
किनारों पर दस्तक देकर के अक्सर बैरंग लौट जाया करती हैं मौज़ें तन्हाई के सताये यहाँ तुम अकेले तो नहीं हो ’’मनीष’’ ~ मनीष शर्मा
